Sunday, April 30, 2006

॥ श्री राम स्तुति ॥

श्री राम चालीसा का यह छँद शायद सबसे अधिक प्रसिद्ध है. भक्ति-भावना से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ इसमें काव्य भी भरा हुआ है:


श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।
नवकंज-लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनील-नीरद सुन्दर ।
पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश-निकन्दनं ।
रघुनन्दन आनन्द कंद कौशलचन्द दशरथ्-नन्दनं ॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं ।
आजानु-भुज-शर-चाप-धर- संग्राम जित-खरदूषणं ॥

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजन ।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजन ॥
मनु हाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो ।
करुणा निधाअन सुजान सील सनेह जानत रावरो ॥

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषी अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥

No comments: