ग़ुलाम अली के शास्त्रीय-संगीत का नमूना इस खूबसूरत ग़ज़ल में दिखता है:
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला
अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा
सख्त नदीम है मुझे दाम में लाने वाला
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इससे
वो जो इक शक़्स है मुँह फेर के जाने वाला
तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला
मुन्तज़िर किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आयेगा यहाँ कौन है आने वाला
मैने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख्वाब की ताबीर बताने वाला
क्या खबर थी जो मेरी जाँ में घुला है इतना
है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला
तुम तक़्क़ल्लुफ़ को भी इखलास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
(अहमद फ़राज़)
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3 comments:
अच्छी लगी अहमद फराज जी की पेशकश....आभार.
बहुत दिनों बाद आपके सौजन्य से इस खूबसूरत गजल को दोबारा पढ़ने का मौका मिला। एक एक शेर दिल में उतर जाता है इसका!
Mubarak Ho Tumko Ye Khushiyon Bhari Raat,
Sajan Lene Aaye Hai Sajni Ka Haat,
Salamat Rahe Dono Ki Ye Jodi,
Rahe Dulah Dulhan hamesha Saath...
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