ये प्यारा-सा मोती किसने नहीं सुना होगा?
देखो इन्हें, ये हैं आस की बूँदें
पत्तों की गोद में, आस्माँ से कूदें
अँगडाई लें, फिर करवट बदल कर
नाज़ुक-से मोती, हँस दें फिसलकर
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
ये तो हैं सर्दी में, धूप की किरणे
उतरें तो आँगन को सुनहरा-सा कर दें
मन के अँधेरों को रौशन-सा कर दें
ठिठुरती हथेली की रँगत बदल दें
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
जैसे आँखों की डिबिया में निँदिया
और निँदिया में मीठा-सा सपना
और सपने में मिल जाए फ़रिश्ता-सा कोई
जैसे रँगों भरी पिचकारी
जैसे तितलियाँ, फूलों की क्यारी
जैसे बिना मतलब का, प्यारा रिश्ता हो कोई
ये तो आशा की लहर हैं
ये तो उम्मीद की सहर है
खुशियों की नहर है
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
देखो रातों के सीने पे ये तो
झिलमिल किसी लौ-से उगे हैं
ये तो अँबिया की खुश्बू है - बाग़ों से बह चले
जैसे काँच में चूडी के टुकडे
जैसे खिले-खिले फूलों के मुखडे
जैसे बँसी कोई बजाए पेडों के तले
ये तो झोंके हैं पवन के
हैं ये घुँघरू जीवन के
ये तो सुर है चमन के
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
मुहल्ले की रौनक़ गलियाँ हैं जैसे
खिलने की ज़िद पर कलियाँ हों जैसे
मुठ्ठी में मौसम की जैसे हवाएँ
ये हैं बुज़ुर्ग़ों के दिल की दुआएँ
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
कभी बातें जैसे दादी नानी
कभी छलकें जैसे "मम्-मम्" पानी
कभी बन जाएँ भोले, सवालों की झडी
सन्नाटे में हँसी के जैसे
सूने होंठों पे खुशी के जैसे
ये तो नूर हैं बरसे गर, तेरी क़िसमत हो बडी
जैसे झील मे लहराए चँदा
जैसे भीड में अपने का कँधा
जैसे मनमौजी नदिया, झाग उडाए कुछ कहे
जैसे बैठे-बैठे मीठी-सी झपकी
जैसे प्यार की धीमी-सी थपकी
जैसे कानों में सरगम हरदम बजती ही रहे
खो न जायें ये...तारे ज़मीं पर
(प्रसून जोशी)
Monday, March 17, 2008
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1 comment:
Raat hai kafi, thandi hawa chal rahi hai
Yaad mein aapki kisi ki muskan khil rahi hai
Unke Sapno ki duniya mein aap kho jao
Aankh karo band or aaram se so jao...
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