Monday, April 10, 2006

आहिस्ता-आहिस्ता

जगजीत सिँह की आवाज़ का जादू बडा है या अमीर-भाई की क़लम का, आप ही फैसला करें:

सरक़ती जाये है रुख से नक़ाब, आहिस्ता-आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब, आहिस्ता-आहिस्ता

जवाँ होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया पर्दा
हया यक़-लख्त आयी और शबाब, आहिस्ता-आहिस्ता

शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों, अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब, आहिस्ता-आहिस्ता

सवाल-ए-वस्ल पे उनको उदूं का खौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब, आहिस्ता-आहिस्ता

हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क़ है इतना
इधर तो जल्दी-जल्दी है वहाँ, आहिस्ता-आहिस्ता

वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब, आहिस्ता-आहिस्ता

(अमीर मिनाई)

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