फरीदा खानम की मदहोश आवाज़ से इस नज़्म में चार चाँद लग जाते हैं:
आज जाने की ज़िद ना करो
यूँ ही पेहलू में बैठे रहो
हाय! मर जायेंगे, हम तो लुट जायेंगे
ऐसी बातें किया ना करो
तुम ही सोचो ज़रा, क्यूँ न रोकें तुम्हे,
जान जाती है जब, उठ के जाते हो तुम
तुम को अपनी क़सम जान-ए-जाँ
बात इतनी मेरी, मान लो
वक़्त की क़ैद में, ज़िन्दग़ी है मगर,
चन्द घडियाँ यही हैं, जो आज़ाद है
इन को खो कर मेरी जान-ए-जाँ
उम्र भर ना तरसते रहो
कितना मासूम रँगीन है ये समा,
हुस्न और उश्क़ की आज मैराज है
कल की किसको खबर जान-ए-जाँ
रोक लो आज की रात को
(फ़य्याज़ आज़मी)
Wednesday, April 12, 2006
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