मेहंदी हसन की खूबसूरत आवाज़ से नवाज़ी यह ग़ज़ल पेश है:
रँजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ
आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिये आ
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया को निभाने के लिये आ
किस-किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफ़ा है तो ज़माने के लिये आ
कुछ तो मेरे पिँदार-ए-मुहब्बत क भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ
इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिये आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझसे हैं उम्मीदें
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिये आ
(अहमद फ़राज़)
Saturday, April 22, 2006
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1 comment:
This is one of my personal favourites too :)
The following lines are by Talib Baghpati but Mehdi Hassan always sings them as part of this ghazal.....
Maanaa ki muhabbat kaa chhipaanaa hai muhabbat
Chupke se kisii roz jataane ke liye aa
Jaise tujhe aate hain na aane ke bahaane
Aise hii kisii roz na jaane ke liye aa
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