यदि तोर डाक सुने केउ न आशे तबे एकला चलो रे
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे
यदि केउ कथा न काई
ओ रे ओ रे, ओ अभगा, केउ कथा न काई
यदि सभई थाके मुख फ़िराए, सभई करे भय
तबे पराण खुले,
ओ तुइ मुख फ़ुटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे
यदि सभई फ़िरे जाय
ओ रे ओ रे, ओ अभगा, सभई फ़िरे जाय
यदि ग्रहण-पथे जाबार काले, केउ फ़िरे न चाहे
तबे पथेर काँटा,
ओ तुइ रक्त-मथा चरण तले एकला डालो रे
यदि आलो न धरे
ओ रे ओ रे, ओ अभगा, आलो न धरे
यदि झर-बादले आँधेर राते द्वार दे घरे
तबे बाजरनाले,
अपन बुकेर पन्जर जालिये निये एकला जलो रे
(रवीन्द्रनाथ ठाकुर)
Sunday, April 30, 2006
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