तूफ़ाँ ब-दिल है हर कोई, दिलदार देखना
गुल हो न जाये मुशअद-ए रुखसार देखना
जज़्बे मुसफ़िराने दहे यार देखना
सर देखना न सँग न दीवार देखना
खू-ए-जफ़ा में क़हत-ए-खरीदार देखना
हम आ गये तो गर्मी-ए-बज़ार देखना
फिर हम तमीज़-ए-रोज़-ओ-मह-ओ-साल कर सकें
ऐ याद-ए-यार, फिर इधर इक बार देखना
(फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़')
Tuesday, May 16, 2006
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