Thursday, May 18, 2006

बात निकलेगी तो फिर

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक़ जायेगी

लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे के तुम इतने परेशाँ क्यूँ हो
उँगलियाँ उठेंगी सूखे हुये बालों की तरफ़
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुये सालों की तरफ़
चूडियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
काँपते हाथों पे भी फ़िक़रे क़से जायेंगे

लोग ज़ालिम हैं, हरेक बात का ताना देंगे
बातों-बातों मे मेरा ज़िक़्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों क ज़रा-सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक़ जायेगी

(क़फील आज़र)

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