Friday, July 14, 2006

रोया करेँगे आप भी

मोमिन की मश्हूर ग़ज़ल, ग़ुलाम-सा'ब के हाथो नवाज़ी हुई:

रोया करेँगे आप भी पहरों मेरी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह

ना ताब हिज्र में है न आराम वस्ल में
कम्बख्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह

मर चुक कहीं के तू ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जाए
कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह

न जाये वाँ बने है, न बिन जाये चैन है
क्या कीजिये हमें तो है मुश्क़िल सभी तरह

लगतीं हैं गालियाँ भी तेरी मुझे क्या भली
क़ुर्बान तेरे, फिर मुझे कह ले किसी तरह

हूँ जाँ-ब-लब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ मे जीते है 'मोमिन' इसी तरह

(मोमिन खाँ 'मोमिन')

2 comments:

Anonymous said...

रोहित जी,

एक गुजारीश है आपसे। आप अपने चिठ्ठे मे एक पन्ना और जोड दे जो इन सभी मोतीयों के लिये लिंक हो।

बाय़े मे जो लिंक है वो सभी नयी प्रविष्टीयो के लिये ठीक है, पुरानी प्रविष्टीयो को ढुंढना पडता है।

धन्यवाद
आशीष

Anonymous said...

रोया करेँगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह

pahle misare mein 'meri tarah' nahiin 'isii tarah' hai....