शहरयार साहब शायद चार-शेरों के ही शौक़ीन हैं:
ज़िन्दग़ी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
सुर्ख फूलों-सी महक उठती है दिल की राहें
दिन ढले यूँ, तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
याद तेरी कभी दस्तक, कभी सर्ग़ोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
हर मुलाक़ात का अँजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
(शहरयार)
Friday, August 04, 2006
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