हुस्न-ए-माह गरचे ब-हँगाम-ए-कमाल अच्छा है
उस से मेरा मह-ए खुर्शीद-जमाल अच्छा है
बोसा देते नहीं और दिल पह है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए जाम से मेरा जाम-ए-सफ़ाल अच्छा है
बे-तलब दें तो मज़ा उस में सिवा मिलता है
वह गदा जिस को न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है
उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
देखिये पाते हैं `उशशाक़ बुतों से कया फ़ैज़
इक बराहमन ने कहा है कि यह साल अच्छा है
हम-सुख़न तेशे ने फ़रहाद को शीरीं से किया
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है
क़तरा दरया में जो मिल जाए तो दरया हो जाए
काम अच्छा है वह जिस का कि म'आल अच्छा है
ख़िज़र सुलतां को रखे ख़ालिक़-ए अकबर सर-सबज़
शाह के बाग़ में यह ताज़ा निहाल अच्छा है
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' यह खयाल अच्छा है
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
Tuesday, April 18, 2006
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