सितारों से आगे जहाँ और भी हैँ
अभी इश्क़ में इम्तिहाँ और भी हैं
ताही ज़िन्दग़ी से नहीं ये फज़ायें
यहाँ सैंकडों करवाँ और भी हैं
कनाअत न कर आलम-ए-रँग-ओ-बू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया इक नश-ए-मन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आश-ओ-फ़ुक़ाँ और भी हैं
तू शहीन है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ के न रह जा
के तेरे ज़मीन और मकाँ और भी हैं
गये दिन कि तन्हा था मैं अन्जुमन में
यहाँ अब मेरे राज़्दाँ और भी हैं
(अल्लामा इक़बाल)
Sunday, April 23, 2006
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1 comment:
hmmm leejiye ek aur ghazal premi ka blog milne pe behad khushi huyi mujhe. aapne behtareen ghazalein chaynit ki hain. sari hi meri pasandeeda hain khaskar aaj jane ki zid, ranjish hi sahi aur chupke chupke.
aapse mulaqat hoti rahegi.:)
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