इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
शुरा-ओ-आईन पर मदार सही
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई
चाल जैसे कडी कमान का तीर
दिल में ऐसे, के जा करे कोई
बात पर वाँ ज़ुबान कटती है
वो कहे और, सुना करे कोई
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे खुदा करे कोई
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई
रोक लो गर ग़लत चले कोई
बक़्श लो गर खता करे कोई
कौन है जो नहीं है हाजतमँद
किसकी हाजत रवा करे कोई
क्या किया खिज्र ने सिकन्दर से
अब किसे रहनुमा करे कोई
जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब'
क्यों किसी का गिला करे कोई
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
Saturday, June 03, 2006
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