मयनोशी पर ग़ुलाम अली की आवाज़ में एक और मोती:
मस्ताना पिये जा, यूँही मस्ताना पिये जा
पैमाना तो क्या चीज़ है, मैखाना पिये जा
कर ग़र्क़ मय-ओ-जाम ग़म-ए-गर्दिश-ए-अय्याम
अब ऐ दिल-ए-नाकाम तू, मैखाना पिये जा
मयनोशी के आदाब से आगाह नहीं तू
जिस तरह कहे साक़ी-ए-मैखाना पिये जा
इस बस्ती में है वहशत-ए-मस्ती ही से हस्ती
दीवाना बन और बादा-ए-दीवाना पिये जा
मैखाने के हँगामें हैं कुछ देर के मेहमाँ
है सुबह क़रीब 'अख्तर' दीवाना पिये जा
(अखतर शिरानी)
Saturday, October 14, 2006
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