Sunday, October 15, 2006

देर लगी तुम को आने में

फ़रीदा खानम का एक और जादू:

देर लगी तुम को आने में, शुक़्र है फिर भी आये तो
आस ने दिल का साथ न छोडा, वैसे हम घबराये तो

शफ़क़ धनक महताब घटायें तारे नग़में बिजली फूल
उस दामन में क्या क्या कुछ है, वो दामन हाथ आये तो

चाहत के बदले में हम तो, बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक, कोई हमें अपनाए तो

क्यूँ ये मिहर-अँगेज़ तबस्सुम, मद्द्-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाय, कोई अँजान अगर इस धोके में आ जाए तो

सुनी-सुनाई बात नहीं है, अपने ऊपर बीती है
फूल निकलते हैं शोलों से, चाहत आग लगाए तो

झूठ है सब, तारीख हमेशा अपने को दुहराती है
अच्छा मेरा ख्वाब-ए-जवानी थोडा-सा दुहराए तो

नादानी और मजबूरी में, यारों कुछ तो फ़र्क़ करो
इक बेबस इँसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो

(अन्दलीब शदानी)

No comments: