चँद शेरों में किसी की ज़िन्दग़ी भर की तालीम:
कौन कहता है, मुहब्बत की ज़बाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
वो न आये तो सताती है खलिश-सी दिल को
वो जो आये तो खलिश और जवाँ होती है
रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़र में ये तनवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है
ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है 'साहिर'
शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है
(साहिर होशियारपुरी)
Tuesday, October 17, 2006
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1 comment:
Its a wonderful collection ....
Praveen
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