Friday, December 01, 2006

कहते हैं मुझसे इश्क़ का अफ़साना चाहिए

कहते हैं मुझसे इश्क़ का अफ़साना चाहिए
रुसवाई हो गई तुम्हे शरमाना चाहिए

खुद्दार इतनी फ़ितरत-ए-रिन्दाँ न चाहिए
साक़ी ये खुद कहे तुझे पैमाना चाहिए

आशिक़ बग़ैर हुस्न-ओ-जवानी फ़िज़ूल है
जब शम्मा जल रही है तो, परवाना चाहिए

आँखों में दम रुका है किसी के लिए ज़ुरूर
वरना मरीज़-ए-हिज्र को मर जाना चाहिए

वादा था उनके रात के आने का ऐ 'क़मर'
अब चाँद छुप गया उन्हें आ जाना चाहिए

(क़मर जलालवी)

No comments: