कहते हैं मुझसे इश्क़ का अफ़साना चाहिए
रुसवाई हो गई तुम्हे शरमाना चाहिए
खुद्दार इतनी फ़ितरत-ए-रिन्दाँ न चाहिए
साक़ी ये खुद कहे तुझे पैमाना चाहिए
आशिक़ बग़ैर हुस्न-ओ-जवानी फ़िज़ूल है
जब शम्मा जल रही है तो, परवाना चाहिए
आँखों में दम रुका है किसी के लिए ज़ुरूर
वरना मरीज़-ए-हिज्र को मर जाना चाहिए
वादा था उनके रात के आने का ऐ 'क़मर'
अब चाँद छुप गया उन्हें आ जाना चाहिए
(क़मर जलालवी)
Friday, December 01, 2006
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