Monday, March 05, 2007

दिखाई दिये यूँ, के बेखुद किया

कुछ ग़ज़लें फ़िल्मी गीत होने की वजह से ग़ज़लें नहीं लगतीं. ये ग़ज़ल उन्ही में से है. मीर की ग़ज़ल होने की वजह से गहरी भी है, और रस भरी भी:

दिखाई दिये यूँ, के बेखुद किया
हमें आपसे भी जुदा कर चले
(आप हमें यूँ दिखाई दिये, के बेखुद कर दिया. इतना, के हम आपसे मिलना भी भूल गए, और आपसे जुदा होते चले गए)

जबीं सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बन्दग़ी हम अदा कर चले

परस्तिश किया तक, के ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की खुदा कर चले

बहुत आरज़ू थी, गली की तेरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

फ़क़ीराना आये सदा कर चले
मिया खुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन न जीने का कहते थे हम
सो उस अहद को अब वफ़ा कर चले
(देख आज हम मर रहे हैं. तेरे बिन न जीने की जो क़समें खाईं थी, वो आज निबाह ही दीं)

कोई नाउम्मीद न करदे निगाह
सो तुम हमसे मुँह भी छुपा कर चले

(मीर तक़ी 'मीर')

2 comments:

Divine India said...

इसपर टिप्पणी करना बस का नहीं हैं…।उत्तम प्रस्तुति॥बधाई>

ashutosh said...

Great blog .. was looking for something written on hindi/ urdu poetry ..great effort ..keep it up