Thursday, May 18, 2006

तेरी खुशबू में बसे खत

तेरी खुशबू में बसे खत, मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुये खत, मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे खत, मैं जलाता कैसे
तेरे खत आज मैं, गँगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिन को इक उम्र कलेजे से लगाये रखा
दीन जिनको, जिनहें ईमान बनाये रखा

तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे

तेरी खुशबू में बसे खत, मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुये खत, मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे खत, मैं जलाता कैसे
तेरे खत आज मैं, गँगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

(रजेन्द्रनाथ रहबर)

1 comment:

Sagar Chand Nahar said...

स्वागत रोहित
हिन्दी चिठ्ठाकारी में आपका स्वागत है, आपने महान कवियों की रचनायें लिखी कुछ मौलिक भी लिखने की कोशिश करें