वतन-परस्ती का ये नग़मा, शायद तब लिखा गया होगा जब 'हिन्दोस्ताँ' ने अपने हिस्से नहीं देखे थे:
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, ये गुलिस्ताँ हमारा
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहाँ हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा, वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलतीं हैं, इस के हज़ारों नदियाँ
गुलशन हैं जिन के दम से, रश्क़-ए-जनाँ हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गँगा, वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे क़िनारे, जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमाँ सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है के हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुशमन दौर-ए-ज़माँ हमारा
'इक़्बाल' कोई मरहम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
(अल्लामा इक़्बाल)
Tuesday, July 04, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
इन्ही इक्बाल मिंया को बाद में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां नहीं पाकिस्तान लगने लगा था.
रोहित, धाँसू सङ्कलन है!
ये वतन परस्ती जा नगमा जरूर है लेकिन वतन परस्त का नही ।
इकबाल मियां ने इसे नादानी मे लिखी रचना करार दी थी ।
मिटटी में मिला दे मैं जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
(अल्लामा इक्बाल)
आशीष श्रीवास्तव, संजय बेंगाणी और आलोक जी कृपया ध्यान दें :----------
परस्ती और पूजा तो सिर्फ ईश्वर की करनी चाहिए. सिर्फ वही इस के काबिल है वतन की और इंसानों की तो इज्ज़त करनी चाहिए उनसे प्यार करना चाहिए.
और वतन तो हमने बनायें है ,जबकि हमसब को (चाहे हम इंडिया /पाकिस्तान में हों या फिर अमेरिका में हो) एक ईश्वर ने बनाया है तो सिर्फ उसी एक ईश्वर की पूजा करनी चाहिए , अपने वतन से सच्ची मुहब्बत करना सीखो और सच्चे ईश्वर को पहचानो , ईश्वर ने तो पृथ्वी बनाई थी हमने तो उसके टुकड़े बनादियें कहीं पाकिस्तान बना दी तो कहीं हिंदुस्तान बनादियें ,
धर्म ब्रन्थों में तो ईश्वर की परिकल्पना कुछ और ही है :
श्वेताश्वतारा उपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 19:
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" अर्थात "उसकी कोई छवि (कोई पिक्चर,कोई फोटो, कोई मूर्ति) नहीं हो सकती".
श्वेताश्वतारा उपनिषद्, अध्याय 4, श्लोक 20:
"न सम्द्रसे तिस्थति रूपम् अस्य, न कक्सुसा पश्यति कस कनैनम" अर्थात "उसे कोई देख नहीं सकता, उसको किसी की भी आँखों से देखा नहीं जा सकता"
भगवद गीता हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पवित्र और मान्य धार्मिक ग्रन्थ है.
"....जो सांसारिक इच्छाओं के गुलाम हैं उन्होंने अपने लिए ईश्वर के अतिरिक्त झूठे उपास्य बना लिए है..." (भगवद गीता 7:20)
"वो जो मुझे जानते हैं कि मैं ही हूँ, जो अजन्मा हूँ, मैं ही हूँ जिसकी कोई शुरुआत नहीं, और सारे जहाँ का मालिक हूँ." (भगवद गीता 10:3)
वेद हिन्दू धर्म की सबसे प्राचीन किताबें हैं. ये मुख्यतया चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद.
यजुर्वेद, अध्याय 32, श्लोक 3:
"न तस्य प्रतिमा अस्ति" अर्थात "उसकी कोई छवि (कोई पिक्चर,कोई फोटो, कोई मूर्ति) नहीं हो सकती."
इसी श्लोक में आगे लिखा है; वही है जिसे किसी ने पैदा नहीं किया, और वही पूजा के लायक़ है.
यजुर्वेद, अध्याय 40, श्लोक 8:
"वह शरीर-विहीन है और शुद्ध है"
यजुर्वेद, अध्याय 40, श्लोक 9:
"अन्धात्मा प्रविशन्ति ये अस्संभुती मुपस्ते" अर्थात "वे अन्धकार में हैं और गुनाहगार हैं, जो प्राकृतिक वस्तुओं को पूजते हैं"
*प्राकृतिक वस्तुएं-सूरज, चाँद, ज़मीन, पेड़, जानवर आदि.
आगे लिखा है;
"वे और भी ज्यादा गुनाहगार हैं और अन्धकार में हैं जिन्होंने सांसारिक वस्तुओं को पूजा"
*सांसारिक वस्तुएं- जिन्हें मनुष्य खुद बनता हैं. जैसे टेबल, मेज़, तराशा हुआ पत्थर आदि.
वेदान्त का ब्रह्म सूत्र भी पढ़ लीजिये):-
"एकम् ब्रह्म, द्वितीय नास्ते, नेह-नये नास्ते, नास्ते किंचन"
"भगवान एक ही है, दूसरा नहीं हैं. नहीं है, नहीं है, ज़रा भी नहीं है."
“There is only one God, not the second, not at all, not at all, not in the least bit"
इस भाग-दौड़ भरी दुनिया में शान्ति की तलाश किसे नहीं है पर कौन बताएगा हमें वो राह?
तो लीजिये आप की ये तलाश ख़त्म हुई,
आप के खिदमत में आप का "इब्न-ए-आदम"
जिसने उंच-नीच, जाती-पति, भेद-भाव & रंग व नस्ल के तमाम असमानताओं को मिटाकर
पूरी इंसानियत को एक धागे में पिरोने की & अमन व शान्ति का पैगाम
पूरी इंसानियत को देने की कसम खाई है!
तो क्या आप मिलना नहीं चाहेंगे अपने चहेते इब्नेअदम से?
तोफिर देर कैसी खोलिए
www.ibneadam.com
आइये हम साथ मिल कर इस अमन के पैगाम को पूरी इंसानियत में आम करें !
Post a Comment