Sunday, February 25, 2007

अफ़साना लिख रही हूँ

शक़ील के सादा लफ़्ज़ों का कमाल:

अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का
आँखों में रँग भरके तेरे इन्तज़ार का

जब तू नहीं तो कुछ भी नहीं है बहार में
जी चाहता है मुँह भी न देखूँ बहार का

हासिल हैं यूँ तो मुझको ज़माने की दौलतें
लेकिन नसीब लाई हूँ इक सोगवार का

आजा के अब तो आँखों में आँसू भी आ गए
साग़र छलक उठा मेरे सब्र-ओ-क़रार का

(शक़ील बदायूनी)

2 comments:

Divine India said...

वाह!!वाह!!ख़ुब!!

Anu said...

thanks for sharing the almost forgotton lyrics...