शक़ील के सादा लफ़्ज़ों का कमाल:
अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का
आँखों में रँग भरके तेरे इन्तज़ार का
जब तू नहीं तो कुछ भी नहीं है बहार में
जी चाहता है मुँह भी न देखूँ बहार का
हासिल हैं यूँ तो मुझको ज़माने की दौलतें
लेकिन नसीब लाई हूँ इक सोगवार का
आजा के अब तो आँखों में आँसू भी आ गए
साग़र छलक उठा मेरे सब्र-ओ-क़रार का
(शक़ील बदायूनी)
Sunday, February 25, 2007
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2 comments:
वाह!!वाह!!ख़ुब!!
thanks for sharing the almost forgotton lyrics...
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