बेग़म अख्तर का गाया हुआ एक और सच्चा मोती:
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे
ऐ देखनेवालों मुझे हँस-हँसके न देखो
तुमको भी मुहब्बत कहीँ मुझ-सा न बना दे
मैं ढूँढ रहा हूँ मेरी वो शम्मा कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
आखिर कोई सूरत भी तो हो खाना-ए-दिल की
क़ाबा नहीं बनता है तो बुतखाना बना दे
'बेहज़ाद हरेक जाम पे इक सजदा-ए-मस्ती
हर ज़र्रे को सँग-ए-दर-ए-जानाँ न बना दे
(बेहज़ाद लखनवी)
Saturday, July 28, 2007
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2 comments:
दिल की कलम से
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld
Jab bhi hogi pehli baarish
tumko samne payenge
woh bundo se bhara chehra
tumhara hum kaise dekh payenge...
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